उत्तराखंड

अखिल भारतीय संस्कृत गोष्ठी का भव्य शुभारंभ

हरिद्वार। संस्कृत भारती की अखिल भारतीय गोष्ठी आज श्री व्यास मन्दिर हरिपुर कलां हरिद्वार में आरम्भ हुई। प्रदेश के मा० मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के द्वारा दीप प्रज्जवलन कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया।

परमार्थ निकेतन के परम अध्यक्ष स्वामी चिदानन्दसरस्वती महाराज ने कार्यक्रम की अध्यक्षता एवं संस्कृत भारती के अखिल भारतीय अध्यक्ष प्रो० गोपबन्धु मित्र  विशिष्ट अतिथि के रूप में विराजमान रहे। श्रीनिवास प्रभु (अध्यक्ष श्रीकाशीमठ संस्थान न्यास, वाराणसी), श्रीमती जानकी त्रिपाठी (प्रान्त अध्यक्ष संस्कृत भारती उत्तरांचल) दिनेश कामत संस्कृत भारती के अखिल भारतीय संगठन मंत्री, प्रो० वाचस्पति मिश्र, डॉ. अंकित वर्मा आदि महानुभाव मौजूद रहे।

डॉ. वेदव्रत ने सभी अतिथियों का परिचय करवाया। डॉ. अरुण मिश्रा ने मंगलाचरण प्रस्तुत किया। सभी अतिथियों का रुद्राक्ष माला, गंगाजली, वस्त्रपट. वेदव्यास एवं अंजनी की मूर्ति द्वारा पारम्परिक रूप से स्वागत किया गया।

संस्कृत भारती के अखिलभारतीय संगठन मंत्री श्री दिनेश कामत ने कहा कि दो व्यक्तियों से आरम्भ होकर संस्कृत भारती संगठन आज 26 देशों में संस्कृत का कार्य कर रही है। संस्कृत भारती सरल संस्कृत में बातचीत सीखने के साथ ही साथ सरल संस्कृत पुस्तक लेखन, मुक्त स्वाध्याय केन्द्र, दस दिवसीय शिविर संचालन, बाल केन्द्र, गीता शिक्षण केन्द्र, संस्कृत सप्ताह मिलन जैसे कार्यक्रमों का आयोजन खण्ड़स्तर, जनपदस्तर, राज्यस्तर, पर कर रही है।

लोकसभा एवं राज्यसभा में नवनिर्वाचित सांसद सदस्यों के द्वारा संस्कृत में शपथ लेने के लिए उन्होंने सभी का आभार प्रकट किया। उत्तराखण्ड राज्य की द्वितीय राजभाषा संस्कृत है तथा उत्तराखण्ड में विद्यालयी शिक्षा में संस्कृत अनिवार्य हो। नवशिक्षा नीति के अन्तर्गत कक्षा 3 से कक्षा 12 तक भारतीय ज्ञान परम्परा के तहत संस्कृत भाषा एक विषय के रूप में अनिवार्यतः पढ़ाई जाए। उन्होने कहा कि जो संस्कृत को नहीं जानता वह भारत को कैसे जान सकता है। उन्होंने सभी को संस्कृत में बोलने व कार्य करने की प्रेरणा प्रदान की।

कार्यक्रम के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्दसरस्वती ने कहा कि संस्कृत भारती ने आज देश से लेकर विदेश तक संस्कृत बोलने का गौरव हासिल किया है। उन्होंने कहा कि आने वाला युग संस्कृत का होगा ।

मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी ने अखिल भारतीय गोष्ठी को सम्बोधित करते हुए समस्त भारत से आए हुए प्रतिनिधियों का उत्तराखण्ड सरकार की ओर से स्वागत किया। उन्होंने कहा कि आज भी संस्कृत अभिव्यक्ति मात्र नहीं है, बल्कि संस्कृत समस्त मानव जाति की भाषा है संस्कृत समस्त भाषाओं की जननी है। अनादि काल से आज तक संस्कृत हमारी ज्ञानमयी भाषा रही है। वैश्विक संदर्भ के प्रमाण में उन्होंने कहा कि अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर ग्रह नक्षत्र की काल गणना और औषधियों के लिए संस्कृत ग्रन्थों का प्रमाण दिया जा रहा है। संस्कृत भाषा के वर्णोंउच्चारण की वैज्ञानिकता को समझाते हुए उन्होंने बताया कि संस्कृत के उच्चारण में कोई भी वर्ण विलुप्त नहीं होता हैं, जबकि अंग्रेजी भाषा में ऐसा नही होता है। साथ ही कहा की संस्कृत पूर्ण रूप से विशुद्ध वैज्ञानिक भाषा है।

उन्होंने संस्कृत व्याकरण का उदाहरण देते हुए कहा कि संस्कृत भाषा में वाक्य में शब्दों को आगे पीछे रखने पर भी उसके अर्थ पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, जबकि अन्य भाषाओं के अर्थ में भिन्नता आती है। उन्होंने कहा कि संस्कृत में एक अक्षर में श्लोक रचने की क्षमता है। ऐसा सामर्थ्य विश्व की किसी भी अन्य भाषा में नहीं है। मुख्यमंत्री ने इस बार ग्रीष्म कालीन राजधानी गैरसैंण विधानसभा में आयोजित संस्कृत संभाषण का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि प्रदेश में हम संस्कृत संर्वधन के लिए प्रयास कर रहे है। संस्कृत भारती उत्तराञ्चल के न्यासी प्रो० प्रेमचन्द शास्त्री ने आए हुए सभी अतिथियों का धन्यवाद प्रकट किया।

प्रान्त संपर्क प्रमुख डॉ. प्रकाश पन्त ने उत्तराखण्ड का परिचय कराते हुए कहा कि उत्तराखण्ड में 12वीं शताब्दी से संस्कृत लेखन परम्परा के प्रमाण मिलते है। राजा ललितसूर देव के लेख का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा कि तत्कालीन पर्वताकार राज्य की राजभाषा भी संस्कृत थी। आज भी उत्तराखण्ड में दो संस्कृत ग्राम भन्तोला (बागेश्वर) तथा किमोठा (चमोली) है।

डॉ. भारती कनौजिया के शान्ति पाठ किया। मंच संचालन प्रान्त मंत्री गिरीश तिवारी ने किया। इस अवसर पर अखिल भारतीय सह संगठन मंत्री , जयप्रकाश, सम्पर्क प्रमुख श्रीश देव पुजारी, क्षेत्र प्रमुख देवेंद्र पण्ड्या प्रांत संगठन मन्त्री, गौरव शास्त्री, उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफ़ेसर दिनेशचन्द्र शास्त्री, संस्कृत शिक्षा सचिव श्री दीपक कुमार, संस्कृत शिक्षा निदेशक डॉ. आनन्द भारद्वाज, प्रो० लक्ष्मी निवास पाण्डेय, दत्तात्रेय ब्रजल्ली, हुलास चन्द्र, डॉ. संजीव, डॉ. सचिन आदि के अतिरिक्त भारत के सभी राज्यों से संस्कृत भारती के प्रतिनिधि उपस्थित रहे।

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