छत्रपति शिवाजी महाराज और RSS के द्वितीय सरसंघचालक माधव सदाशिवराव गोलवलकर जी की जयंती
ऋषिकेश। परम प्रतापी वीर योद्धा, भारत माता के लाल छत्रपति शिवाजी महाराज और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री माधव सदाशिवराव गोलवलकर जी (श्री गुरूजी) की जयंती पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती ने श्रद्धाजंलि अर्पित कर उनकी राष्ट्रभक्ति को नमन किया।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि श्री गुरूजी ने अपना सर्वस्व राष्ट्र को समर्पित किया। उनका आदर्श वाक्य था ‘‘राष्ट्राय स्वाहा, इदं राष्ट्राय, इदं न मम” अर्थात सबकुछ राष्ट्र को समर्पित है, यह मेरा नही है, कुछ भी मेरा नहीं है, जो भी कुछ है वह सब राष्ट्र का है और राष्ट्र को ही समर्पित है। इस मंत्र को उन्होंने अपने जीवन में चरितार्थ कर दिखाया। वे जीवन पर्यंत राष्ट्र निर्माण के लिये तत्पर रहे। उन्होंने अपना पूरा जीवन राष्ट्र के नवोत्थान के लिये समर्पित कर दिया। उनकी राष्ट्रभक्ति, अद्भुत व्यक्तित्व और विलक्षण ऊर्जा का ही प्रताप है कि आज हम राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ जैसी दिव्य संस्था को देख रहे हैं। श्री गुरूजी की राष्ट्रभक्ति, प्रेम, सहिष्णुता की सुगंध आज भी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ परिवार में महसूस की जा सकती है।
स्वामी जी ने आज छत्रपति शिवाजी महाराज को नमन करते हुए उनकी वीरगाथाओं को याद किया। छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती पर उनकी राष्ट्रभक्ति व स्वराज्य के प्रति उनकी निष्ठा का वर्णन करते हुए कहा कि उन्होंने साहस और शौर्य की मिसाल कायम की। उनकी माता ने उनके हृदय में जो स्वाधीनता की लौ प्रज्वलित की उन्होंने उस लौ को मशाल बनाकर अपनी मातृभूमि की रक्षा व सनातन स्वराज्य के लिये सर्वस्व समर्पित कर दिया और भारतीयों को एक भयमुक्त वातावरण का अहसास करवाया।
स्वामी जी ने कहा कि दोनों महापुरूषों ने राष्ट्र गौरव व संस्कृति के उत्कर्ष के लिये अद्भुत कार्य किये। उनकी विद्वता कर्मठता, त्याग, तपस्या और बलिदान की सुगंध आज भी भारत की माटी में व्याप्त है।
स्वामी जी ने कहा कि महापुरूषों के विचार, मूल, मूल्य और संस्कृति से जुड़ कर ही आज की युवा पीढ़ी अपनी जड़ों को मजबूत कर सकती है। भारतीय संस्कृति समर्पण की संस्कृति है, स्वयं को तलाशने, तराशने तथा स्वयं से वयं तक की यात्रा की संस्कृति है, यही संदेश हमारे महापुरूषों ने भी दिया है। भारतीय संस्कृति साधना, समर्पण और सेवा तीन स्तंभों पर आधारित है। आज भारतीय समाज को जरूरत है साधना, समर्पण और सेवा के सूत्रों को आत्मसात करने की। आईये प्राचीन गौरवशाली विरासत तथा सांस्कृतिक धरोहर के सूत्रों की सुदृढ़ नींव पर नए मूल्यों व नई संस्कृति को विकसित करें। प्राचीन मूल्यों को सहेजे, सवारें और आध्यात्मिकता एवं वैज्ञानिकता के महासंगम से सार्वभौमिक एकता और शान्ति का निर्माण करने वाली संस्कृति को विकसित करें।
आज की परमार्थ निकेतन गंगा आरती दोनों पूज्य महापुरूषों को समर्पित की।