उत्तराखंड

प्रथम राष्ट्रपति भारत रत्न डॉ.राजेंद्र प्रसाद जी की पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि कार्यक्रम। विश्वविख्यात कुंडलिनी योग के योगाचार्य गुरुमुख कौर और योगाचार्य गुरुशब्द ने परमार्थ निकेतन में 81 वाँ जन्मदिन मनाया

ऋषिकेश। अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कुंडलिनी योग के विख्यात योगाचार्य, गुरूमुख कौर और योगाचार्य गुरूशब्द खालसा अमेरिका से आये। उन्होंने परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और साध्वी भगवती सरस्वती जी से भेंट कर विभिन्न आध्यात्मिक जिज्ञासाओं का समाधान प्राप्त किया। उन्होंने अपना 81 वां जन्मदिन परमार्थ निकेतन में ही मनाया और कहा कि भारतीय विधा योग व आयुर्वेद का जीवन में अद्भुत प्रभाव है। संपूर्ण विश्व आज इस अनुपम विद्या की ओर आकर्षित हो रहा है। स्वामी जी ने उन्हें अधिक से अधिक समय भारत में बिताने हेतु प्रेरित किया।

परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि भारत का आतिथ्य और आध्यात्म का अद्भुत संगम है।  तीर्थाटन और पर्यटन में योगनगरी ऋषिकेश का भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व में महत्वपूर्ण स्थान है। यह भूमि सांस्कृतिक आदान-प्रदान के साथ ही विविध संस्कृतियों और परंपराओं को आत्मसात कर समानता का संदेश देती है।

स्वामी जी ने कहा कि उत्तराखंड की समृद्ध विरासत, संस्कृति, प्राकृतिक सौन्दर्य, तीर्थाटन की अनूठी विविधता और भारत का ‘सॉफ्ट पावर’ विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करता है। साथ ही हमारे ऋषियों द्वारा हमें ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ का संस्कार दिया है, उस पर हमारी अटूट आस्था है। यह समय प्राचीन परम्पराओं और दिव्य सूत्रों के साथ आगे बढ़ने का है।

स्वामी जी ने आज भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी की पुण्यतिथि पर भावभीनी श्रद्धाजंलि अर्पित करते हुये कहा कि स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी एक अद्भुत व्यक्तित्व के धनी थे। उन्होंने स्वतंत्रता के पश्चात एक उभरते राष्ट्र के निर्माण में अद्भुत भूमिका निभायी।

डॉ. प्रसाद जी के हृदय में विनम्रता, ज्ञान और राष्ट्र के प्रति अद्भुत समर्पण था। न्याय, समानता और कल्याण के आदर्शों के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता और निष्ठा थी। माननीय राष्ट्रपति के रूप में अपने पूरे कार्यकाल के दौरान, राजेंद्र प्रसाद जी ने लोकतांत्रिक मूल्यों और संविधान के सिद्धांतों के प्रति गहरी प्रतिबद्धता बनाये रखी। वे जब तक राष्ट्रपति रहे उन्होंने उस पद की गरिमा बरकरार रखते हुये स्वयं को आम नागरिक के लिए भी सुलभ बनाया। उनका निजी जीवन उन सभी भारतीय मूल्यों को प्रतिबिंबित करता है जो हमें हमारे प्राचीन ऋषियों से प्राप्त हुये हैं।

उनके कार्यकाल के दौरान ही राष्ट्रपति भवन का गार्डन पहली बार लगभग एक महीने के लिए आम जनता के लिए खुला था और तब से यह लोगों के लिए एक बड़ा आकर्षण रहा है।

28 फरवरी, 1963 को अपने निधन तक वे राष्ट्रीय महत्व के मामलों पर अपने विचार और ज्ञान प्रदान करते हुए देश के मार्गदर्शक शक्ति बने रहे। भारत को एक लोकतांत्रिक और समावेशी राष्ट्र बनाने में उनका महत्वपूर्ण योगदान है।

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