उत्तराखंड

नदी है तो जीवन है। नर्मदा जयंती, जल है तो कल है

ऋषिकेश। भारत में नदियों को माता कहा जाता है, आज नदियां प्रदूषित की जा रही हैं, नदियाँ धरती की रूधिर वाहिकायें हैं, यदि नदियाँ संकट में हैं तो सम्पूर्ण मानव सभ्यता महासंकट में है,इसलिए नदियों को स्वच्छ व प्रदूषण मुक्त रखने के लिये नदियों में कूड़ा करकट डालना और सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग बंद करना होगा।

कथाकार श्रीकांत व्यास जी ने स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी से भेंट कर परमार्थ गंगा आरती में सहभाग किया।

सनातन धर्म में माँ गंगा की तरह ही माँ नर्मदा को भी अत्यधिक पवित्र और पूजनीय माना गया है। शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि माँ नर्मदा के स्पर्श मात्र से ही पाप.दोष मिट जाते हैं। स्कंद पुराण के रेखाखंड में ऋषि मार्केंडेय द्वारा उल्लेख किया गया है कि माँ नर्मदा के तट पर ही भगवान नारायण के सभी अवतारों ने आकर माँ की स्तुति की थी। द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग  नर्मदा और कावेरी नदी के संगम पर स्थित है।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि माँ नर्मदा का उद्गम भारत के हृदय स्थल मध्य प्रदेश में अमरकंटक के निकट मैकाल श्रेणी से हुआ है। हम जानते है कि दुनिया की लगभग सभी सभ्यताओं का उद्गम नदियों के तटों पर ही हुआ है और जो नदियाँ सदानीरा थी वही पर सभ्यतायें फली.फूली भी है।

नदियाँ प्राचीन काल से ही मानव सभ्यता के केंद्र में रही हैं तथा नदियाँ हमारे लिये वरदान साबित होती रही हैं। पहले नदियों के साथ मानव सभ्यता कायदे से रहती थी परन्तु अब अपने क्षणिक स्वार्थ के लिये उन्हें प्रदूषित किया जा रहा है। जिन नदियों को जीवनदायिनी कहा जाता है, अब उन्हीं जीवनदायिनी नदियों का जीवन खतरे में है। साथ ही संपूर्ण इकोसिस्टम पर भी खतरा मंडरा रहा है। जिसके कारण नदियाँ और मानव दोनों अपने.अपने अस्तित्व के लिए जूझ रहे हैं।

स्वामी जी ने कहा कि भारत एक कृषि प्रधान और इसलिये  नदी प्रधान राष्ट्र है। भारत को भारत बनाने में नदियों का महत्वपूर्ण योगदान  है परन्तु उन्हीं नदियों को हमने कचरा घर में तब्दील करने कोशिश की है, जिससे न सिर्फ नदियाँ परेशान हैं बल्कि जलीय इकोसिस्टम भी असंतुलित हो रहा है।

यदि हम समय रहते सचेत हो गए तो, हम नदियों को स्वच्छ रखकर ही आधुनिक मानव सभ्यता और भावी पीढ़ियों को सुरक्षित रख सकते हैं। आईये एक मजबूत समावेशी और स्थिर विकास की ओर बढें और भूमि, जल और वायु को प्रदूषण मुक्त कर स्वच्छ और टिकाऊ वातावरण के निर्माण में अपना योगदान प्रदान करें।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी के पावन सान्निध्य में सभी ऋषिकुमारों ने विश्व ग्लोब का अभिषेक कर नदियों के संरक्षण का संकल्प लिया।

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