आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती जी की 200 वीं जयंती
टंकारा/गुजरात। महान समाज सुधारक, आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द सरस्वती जी की 200 वीं जयंती महोत्सव में संतों अपनी-अपनी भावाजंलि अर्पित करते हुये कहा कि महर्षि दयानन्द सरस्वती जी केवल आर्य समाज के नहीं बल्कि पूरे भारत के प्रेरणास्रोत हैं।
परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि महर्षि दयानन्द सरस्वती जी ने समाज के सभी क्षेत्रों में अद्भुत योगदान दिया और कुरीतियों को दूर के करने के लिये उन्होंने आवाज़ उठाई। उन्होंने कहा कि जो सत्य के अर्थ को प्रकाशित कर रहा है वही “सत्यार्थ प्रकाश” है।
महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती जी को पुनर्जागरण युग का हिंदू मार्टिन लूथर कहा जाता है। उन्होंने संदेश दिया कि ‘वेदों की और लौटे’ और ‘भारत की प्रभुता को समझो’। उन्होंने समाज को अभिनव राष्ट्रवाद और धर्म सुधार का संदेश दिया। स्वामी दयानंद जी के विचारों के अनुसार व्यक्ति के जीवन का उद्देश्य समाज के शारीरिक, सामाजिक और आध्यात्मिक कल्याण के लिये कार्य करना होना चाहिये।
उन्होंने व्यक्तिगत उत्थान के स्थान पर सामूहिक उत्थान को अधिक महत्त्व दिया। सामाजिक कल्याण और सामूहिक उत्थान तभी संभव हो सकता है, जब व्यक्ति के मन में सेवा त्याग और समर्पण की भावना हो।
महर्षि दयानंदजी ने ज्ञान के स्रोत के रूप में वेदों को स्थापित किया तथा आर्य समाज की स्थापना की। उनका कहना था कि वेदों की व्याख्या मानव-विवेक द्वारा होनी चाहिये क्योंकि मानव द्वारा व्याख्यायित समुचित शिक्षा के प्रसार द्वारा ही अज्ञान और भ्रांति को दूर कर मानव-विवेक का विकास किया जा सकता है।
उनके अनुसार, शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ विज्ञान और समाजशास्त्र जैसे विषयों का अध्ययन नहीं बल्कि चरित्र निर्माण, सेवा भाव और निष्ठा का विकास करना है। उनके द्वारा शिक्षा को जनहितकारी गतिविधियों के साथ संयोजित किया गया। स्वामी दयानंद सरस्वती जी का योगदान एक विचारक और सुधारक दोनों ही रूपों में सहज प्रेरणा का स्रोत है।
स्वामी जी ने कहा कि वेद, सनातन संस्कृति के प्राचीनतम ग्रन्थ हैं और हमारी संस्कृति के आधार स्तंभ भी हैं। वेद विश्व की सबसे प्राचीन लिखित कृतियों में से हैं इसलिये वेदों को संसार का आदि ग्रंथ कहा जाता है। वेदों में आध्यात्मिकता और वैज्ञानिकता, चिकित्सा और स्वस्थ दिनचर्या के अलावा स्वाधीनता और समानता, प्रकृति और पंचमहाभूतों का भी स्पष्ट उल्लेख किया गया है।
ऋग्वेद में वैश्विक कल्याण के लिये बड़ा ही दिव्य मंत्र है अब समय आ गया है कि विकिपीडिया की तरह “वैदिक पीडिया” बने। वेद, जीवन को सफाई, सच्चाई और ऊँचाई की ओर बढ़ने का संदेश देते हैं। वेदभाषा, विश्व भाषा, वेदवाणी विश्ववाणी हो चूंकि वेद वाणी “वसुधैव कुटुम्बकम्” की वाणी है। वैदिक ज्ञान वैश्विक ज्ञान बने, इस तरह से हमारे विद्वानों को कार्य करना चाहिये ताकि वेद भाषा जन-जन की भाषा बने और सर्व सुलभ हो ताकि सर्व हित वाले मंत्र सर्व सुलभ मंत्र बने। ’’वेब वल्र्ड से वेद वल्र्ड की ओर बढ़ें’’से तात्पर्य है कि उसमें जो भी मार्गदर्शन है वह सभी के लिये है वेदों में मनुर्भव, मनुष्य बनें, मानव बनें। वेद, मानवता और इनसानियत का संदेश देते हैं।
महर्षि दयानन्द सरस्वती जी की 200 वीं जयंती महोत्सव को माननीय राष्ट्रपति भारत श्रीमती द्रोपदी मूर्मु जी का सान्निध्य और आशीर्वाद प्राप्त हुआ, यह अत्यंत दिव्य, भव्य और गौरवान्वित करने वाला विषय है। पूरे भारत में आर्य समाज संस्था में सेवा करने वाले सभी कार्यकताओं ने इस दिव्य महोत्सव में सहभाग किया तथा 35 देशों ने वर्चुअल माध्यम से जुड़कर पूज्य संतों व विशिष्ट अतिथियों का आशीर्वाद प्राप्त किया।