राष्ट्रीय

सनातन न्यास फाउंडेशन द्वारा दिल्ली में सनातन धर्म संसद का आयोजन

प्रसिद्ध कथावाचक देवकीनन्दन ठाकुर जी के नेतृत्व व मार्गदशर्न में हुआ शुभारंभ

भारत में सनातन बोर्ड का गठन के गठन की मांग के साथ ही कृष्ण जन्मभूमि मथुरा मुक्ति एवं तिरूपति मन्दिर के प्रसाद में मिलावट आदि अनेक विषयों पर गहन चर्चा

द्वारका शारदापीठाधीश्वर अनन्त श्री विभूषित जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी श्री सदानन्द सरस्वती जी, परमार् निकेतन के अध्यक्ष, स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी, जगद्गुरू श्री परमहंस आचार्य जी, गीता मनीषी स्वामी श्री ज्ञानानन्द जी, श्रीमहंत रविन्द्र पुरी जी, पं श्री प्रदीप मिश्रा जी, सुदामा कुटी स्वामी श्री सुतीक्ष्ण देवाचार्य जी, डा रामविलास वेदान्ती जी, हनुमान गढ़ी श्री राजूदास जी, श्री गंगापुत्र त्रिदण्डी स्वामी जी, श्री गोविन्दानन्द तीर्थ जी, महंत श्री नवल किशोर दास जी, श्री राम दिनेश आचार्य जी, श्री देवमूर्ति सरस्वती जी, श्री अभय दास जी, श्री दीपांकर जी, श्री मृदुलकांत शास्त्री जी, अहिंसा विश्व भारती, आचार्य श्री लोकेश मुनि जी और अन्य पूज्य संतों, महंतों और कथाकारों का पावन सान्निध्य

दिल्ली। विश्व प्रसिद्ध कथावाचक देवकी नंदन ठाकुर के नेतृत्व एवं मार्गदर्शन में सनातन न्यास फाउंडेशन ने दिल्ली में सनातन धर्म संसद का आयोजन किया। जिसमें द्वारका शारदापीठाधीश्वर अनन्त श्री विभूषित जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी श्री सदानन्द सरस्वती जी सहित परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और पूज्य संतों व महंतों की गरिमामय उपस्थिति रही। इस महत्वपूर्ण सभा में सनातन धर्म के संरक्षण और संवर्धन के लिए कई अहम विषयों पर चर्चा की गई।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने इस अवसर पर कहा कि सनातन बोर्ड किसी के खिलाफ नही है। वह सब के सम्मान और सब समान की बात करता है। जो वर्ग पीछे छूट गये हैं उन सबको साथ लेकर देश में समता, समरसता और सद्भाव को बढ़ाने के लिये तथा अन्य कई तरह की समस्यायें जो समय-समय पर आती है, जिनका सामना लोगों को करना पड़ता है उसके लिये एक ऐसा बोर्ड हो जहां पर समाज को संतों का मार्गदर्शन प्राप्त होता रहे। स्वामी जी ने कहा कि सनातन है तो मानवता, सद्भाव, शान्ति और सुरक्षा है।

सनातन धर्म के प्रति हर हिन्दू का कर्तव्य है कि वह अपने धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए एकजुट हो। उन्होंने बताया कि सनातन बोर्ड का गठन इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा, जिससे धर्म और संस्कृति के संवर्धन में सहायता मिलेगी। इस संसद का मुख्य उद्देश्य भारत में सनातन धर्म के अनुयायियों को एक संगठित रूप से कार्य करने के लिए प्रेरित करना है।

सभा के दौरान विभिन्न मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की गई, जिनमें प्रमुख रूप से श्रीकृष्ण जन्मभूमि मथुरा मुक्ति, तिरुपति मंदिर के प्रसाद में मिलावट, और धार्मिक स्थलों की सुरक्षा शामिल थे। स्वामी जी ने कहा कि ये विषय न केवल धर्म के अनुयायियों के लिए महत्वपूर्ण हैं, बल्कि पूरे देश की सांस्कृतिक धरोहर के लिए भी अहम हैं।

सभा में उपस्थित सभी गणमान्य अतिथियों और पूज्य संतों ने अपने विचार साझा किए और सनातन धर्म संसद के उद्देश्यों की सराहना की। उन्होंने कहा कि इस तरह की सभा समाज में एकजुटता और सांस्कृतिक जागरूकता को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

कृष्ण जन्मभूमि मथुरा मुक्ति के विषय पर चर्चा करते हुए, स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि यह मामला केवल धार्मिक दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि देश की सांस्कृतिक धरोहर की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। स्वामी जी ने कहा कि सनातन धर्म संसद के माध्यम से हम उन सभी मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करेंगे जो हमारे धर्म और संस्कृति के लिए महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने कहा कि यह संसद हमारे समाज के लिए एक मंच प्रदान करेगी, जहां हम अपने विचार साझा कर सकते हैं और अपने धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए आवश्यक कदम उठा सकते हैं।

तिरुपति मंदिर के प्रसाद में मिलावट के मुद्दे पर भी सभा में व्यापक चर्चा हुई। सभा के सदस्यों ने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि धार्मिक स्थलों पर प्रसाद में मिलावट एक गंभीर समस्या है और इसे तत्काल रोका जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर सरकार को सख्त कदम उठाने चाहिए और धार्मिक स्थलों की सुरक्षा को सुनिश्चित करना चाहिए।

श्री देवकीनन्दन ठाकुर जी ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि सनातन धर्म संसद का उद्देश्य केवल धार्मिक मुद्दों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका लक्ष्य समाज के सभी वर्गों को धर्म और संस्कृति के महत्व को समझाना है। उन्होंने कहा कि सनातन बोर्ड का गठन देशभर के हिन्दुओं को एकजुट करने में मदद करेगा और इसके माध्यम से हम अपने धर्म और संस्कृति की रक्षा कर सकेंगे।

सभा के अंत में, सभी ने संकल्प लिया कि वे अपने धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए हमेशा तत्पर रहेंगे। उन्होंने कहा कि सनातन धर्म संसद के माध्यम से हम अपने समाज को एकजुट कर सकते हैं और अपने धर्म और संस्कृति के संवर्धन में योगदान कर सकते हैं।

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