पहाड़ों में नवरात्रों के बाद क्यों होता है, रामलीला का आयोजन
आजकल यहां चल रही है रामलीला। पुल्यासू में हरिबोधिनी एकादशी से क्यों होता है रामलीला का आयोजन?
हमारे देश में शारदीय नवरात्र में रामलीला का आयोजन किया जाता है, लेकिन उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में रामलीला का आयोजन नवंबर माह में रात के समय किया जाता है।
इसका मुख्य कारण यह है कि नवरात्रों के समय खेती का काम चलता रहता है। एक तरफ झंगोरे, कोदे की लवाई के साथ साथ दाल, गहथ, मर्सू, तिल आदि की लवाई एवं मंडाई दूसरी तरफ घास की कटाई।
नवरात्रों के समय लोग खेती बाड़ी के काम में व्यस्त रहते हैं, और इस समय खेत भी खाली नहीं रहते, इसलिए यहां पर रामलीला का आयोजन नवरात्रों के बाद किया जाता है।
पहाड़ों की सबसे प्राचीन रामलीला
पौड़ी की रामलीला सन 1897 में शुरू हुई थी, तब यह रामलीला कांडई गांव में होती थी। यह रामलीला यूनेस्को की धरोहर में शामिल है।
यमकेश्वर ब्लॉक के आवई गांव की रामलीला सन 1899 के आस पास की मनी जाती है। उस समय दूर दूर से लोग यहां रामलीला देखने आते थे। यहां पर मार्गशीर्ष महीने की संक्रांति से रामलीला का आयोजन किया जाता है
द्वारीखाल ब्लॉक के पुल्यासू गांव की रामलीला भी सन 1903 की मनी जाती है। यहां पर नीलकंठ महादेव का प्राचीन मंदिर यहां पर वैकुंठ चतुर्दशी की रात को निसंतान दंपति संतान प्राप्ति के लिए खड़रात्रि पूजन करते हैं। खड़रात्रि पूजन में दंपति को हाथ में दिया लेकर रातभर खड़ा रहकर जागना पड़ता है। वैकुंठ चतुर्दशी के कारण ही यहां पर रामलीला का मंचन शुरू हुआ। पुल्यासू में रामलीला का आयोजन हर साल हरिबोधिनी एकादशी के दिन से किया जाता है, वैकुंठ चतुर्दशी की रात को वनवास लीला होती है, यह तिथि पहले से ही निश्चित है।
देहरादून की रामलीला 1968 में जमुनादास भगत ने शुरू करवाई थी।
अल्मोड़ा में रामलीला का आयोजन पहली बार सन 1860 में हुआ था।
पिथौरागढ़ में सन 1868 में तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर देवीदत्त मकड़ियां के प्रयासों से पहली बार रामलीला का आयोजन किया गया।
पहाड़ों रामलीला का मंचन रात को समय 10 बजे से किया जाता है, अब कुछ स्थानों पर रामलीला का मंचन दिन के समय होने लगा है।
आजकल कई गांवों में रामलीला का आयोजन ही रहा है, 30 अक्टूबर से बमोली, 31 अक्टूबर से कूंतणी, 12 नवंबर से पुल्यासू, 3 नवम्बर से गूम( सिलोगी), 5 नवम्बर से सिलोगी बाजार, 30 अक्टूबर से पाली धारी (डाडामण्डी), 30 अक्टूबर ढौरी (देवीखेत), 3 नवम्बर से थापला निकट काँसखेत घण्डियाल।