श्रीराम कथा गाने व सुनने से भाग्योदय होता है – संत मुरलीधर जी
ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन में आयोजित 34 दिवसीय श्री राम कथा के 12 वें दिन आज कथाव्यास संत मुरलीधर जी ने प्रभु श्रीराम व माता सीता जी के विवाह के अद्भुत प्रसंग सुनकर श्रोतागण भावविभोर हो गए। श्रीराम जानकी जी के विवाह की कथा के अवसर पर भक्तों को परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी का पावन सान्निध्य व उद्बोधन भी प्राप्त हुआ।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि भावनाओं से ही हमारी सृष्टि का नूतन स्वरूप प्राप्त होता है। माँ गंगा के तट पर इतनी बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं का आना भावनाओं का ही संसार है।
स्वामी जी ने कहा कि मन्दिर में प्रतिमा होती है, पूजा होती है और पूजारी होते हैं परन्तु वास्तव में इसके पीछे का भाव देखना है तो हमें श्री रामकृष्ण परमहंस जी के व्यक्तित्व में देखना होगा जहां पर माँ और प्रतिमा में कोई अन्तर नहीं रह जाता, हम भी वैसा बननने की कोशिश करें । जिस दिन यह भाव जग जाता है कि मन्दिर में रखी यह प्रतिमा नहीं बल्कि माँ है उस दिन; उस क्षण जीवन बदल जाता है; जीवन में विलक्षण परिवर्तन होता है।
स्वामी जी ने कहा कि हम सब इस जीवन यात्रा के साधक है। प्रभु की कृपा से जीवन बदलने लगता है; जीवन में क्रान्ति होने लगती है। वैराग्य तो यही है जहां हमें अपने अस्तित्व का भी होश न रहे।
स्वामी जी ने कहा कि श्रीराम कथा के माध्यम से जनसमुदाय के दिलों में भारतीय संस्कृति, संस्कार और दिव्य परम्पराओं का प्रवेश होता हैं। हमारे विश्वास को दृढ़ करने के लिये ही ये कथायें हैं। हम सब के विश्वास को जगाये रखने के लिये ये गंगा जी के तट हैं, ये दिव्य कथायें हैं और ये अद्भुत संस्कृति हैं।
स्वामी जी कहा कि जब भावनायें शुद्ध होती है तो मन मन्दिर हो जाता है, जब हमारा आहार शुद्ध होता है तो तन मन्दिर हो जाता है और हमारे विचार शुद्ध होते हैं तो पूरा वातावरण सकारात्मक हो जाता है। जब ये तीनों सुन्दर हो तो जीवन सुन्दर बन जाता है और जीवन ही मन्दिर बन जाये। उन्होंने कहा कि मन्दिर में जाये बहुत अच्छी बात है परन्तु मन ही मन्दिर बन जाये उससे बढ़िया कुछ भी नहीं है। ये सब हमें आत्मनिरिक्षण के माध्यम से प्रतिदिन देखना चाहिये। प्रतिदिन आत्मनिरिक्षण करते-करते ही जीवन शुद्ध बन जाता है।
कथा व्यास संत मुरलीधर जी ने कहा कि श्री राम कथा हमें मर्यादा की शिक्षा प्रदान करती है। इस दिव्य कथा में चाहे गुरू हो या फिर षिष्य, माता-पिता हो या पुत्र, पति-पत्नी या फिर भाई-भाई सब एक-दूसरे के मन की गति को जान लेते हैं इसलिये तो मानस कथा को मर्यादा पुरुषोत्तम की कथा कहा गया है। इस कथा में शिष्य अपनी उन्नति का आधार अपने गुरू को मानते हैं, तो गुरू भी अपने शिष्य के पुरूषार्थ को स्वीकार करते हैं।
आज की श्रीराम कथा के विश्राम के पश्चात स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने रूद्राक्ष का दिव्य पौधा कथा व्यास संत श्री मुरलीधर जी महाराज को भेंट कर हरित कथा का संदेश दिया।