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शंकराचार्य जी की जयंती पर आयोजित ’अद्वैत शंकरम्’ कार्यक्रम में परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती सम्मिलित सम्मिलित हुए। उद्बोधन दिया

नई दिल्ली। आदि शंकराचार्य सेवा समिति नई दिल्ली द्वारा राधा कृष्ण विद्या निकेतन, नई दिल्ली में आदिगुरू शंकराचार्य जी की जयंती के पावन अवसर पर आयोजित अद्वैत शंकरम् कार्यक्रम में परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष चिदानंद सरस्वती जी ने मुख्य अतिथि के रूप में सहभाग किया। इस अवसर पर स्वामी निजामृत चैतन्य जी, श्री जी अशोक कुमार जी (आईएएस), माननीय अनिल अग्रवाल जी, श्रीमती शशिकला जी, श्री सुभाष सुनेजा जी सहित अन्य विशिष्ट अतिथियों ने सहभाग किया। डॉ. श्रीनिवासन थम्बुरान जी, संयोजक, अद्वैत ने सभी अतिथियों को स्वागत अभिनन्दन किया।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि परम तपस्वी, भगवान शंकर के साक्षात अवतार, श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ, सनातन धर्म के ज्योतिर्धर पूज्य आदि गुरू शंकराचार्य जी के प्राकट्य दिवस पर उनकी साधना को नमन, कोटिशः प्रणाम। आदिगुरू शंकराचार्य जी ने भारत की चारों दिशाओं पूर्व, पश्चिम, उत्तर व दक्षिण में चार शंकराचार्यों का अभिषेक कर चार दिव्य मठों की स्थापना के माध्यम से भारत की एकता, एकजुटता और एकात्मता का संदेश दिया और उन्होंने शैवों, वैष्णवों और शाक्तों को एक सूत्र में बांधा ताकि एकजुटता बनी रहे। उन्होंने मठों में पूजन के लिये ‘केसर’ कश्मीर की और नारियल, केरल से व चढ़ता है वैष्णव देवी में व पूरे भारत में उपयोग किया जाता है। आध्यात्मिक दृष्टि से हो, आर्थिक दृष्टि से हो या सामाजिक दृष्टि से हो उन्होंने पूरे समाज को एकता के सूत्र में बांधा।

गंगोत्री से माँ गंगा का जल और पूजा रामेश्वर धाम में, क्या अद्भुत दृष्टि है, उत्तर से दक्षिण व पूर्व से पश्चिम को जोड़ने की उन्होंने कश्मीर से कन्याकुमारी तक, पूरे भारत का भ्रमण कर एकता का संदेश दिया।

आदि गुरू शंकराचार्य जी के संदेशों का सार यही है कि एकरूपता भले ही हमारे भोजन में, हमारी पोशाक में न हो परन्तु हमारे बीच एकता जरूर हो, एकरूपता हमारे भावों में हो, विचारों में हो ताकि हम सभी मिलकर रहें। किसी को छोटा, किसी को बड़ा न समझें, किसी को ऊँच और किसी को नीच न समझें ’’हमारे बीच मतभेद भले हो पर मनभेद न हो। मतभेदों की सारी दीवारों को तोड़ने तथा छोटी छोटी दरारों को भरने के लिये केरल से केदारनाथ तक और कश्मीर से कन्याकुमारी तक आदिगुरू शंकराचार्य जी ने पूरे भारत की छोटी सी आयु में पैदल यात्रा की वह भी उस समय जब कम्युनिकेशन और ट्रांसपोर्टेशन के कोई साधन नहीं थे। उनका जीवन व उनका दर्शन दोनों ही दिव्य है। दशकों पूर्व का उनका संदेश आज भी पूरे विश्व के लिये प्रासंगिक व सार्थक है और केवल अद्वैत ही तो वह मंत्र है जिससे सारी दीवारें टूट सकती है, सारी दरारंे भर सकती है, सारे दिल जुड़ सकते हैं और वसुधैव कुटुम्बकम्, हम एक परिवार है ये मंत्र किसी एक के लिये नहीं बल्कि सब का मंत्र है, सब के लिये मंत्र है और सदा के लिये मंत्र है। आज उनके प्राक्ट्य दिवस पर उनकी साधना, सेवा और दर्शन को नमन।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने अद्वैत शंकरम् कार्यक्रम के संयोजन व पदाधिकारियों को रूद्राक्ष का दिव्य पौधा माँ गंगा जी के आशीर्वाद स्वरूप भेंट किया।

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